सोमवार, 24 अगस्त 2009

उपहार

तुमको तो मालुम है सचमुच,
में था उस क्षण लाचार प्रिये।
तुम मेरे आगे से गुजरी,
इन आँखों ने दीदार किए।
ये रूप रंग,ये कंचन काया,

देख मेरे थे होंठ सिये।
तेरी जुल्फों के खुशबू थी,
या मेरे दिल में जले दिए।
तेरी आंखों की मदिरा से,
थे कितने प्याले रोज़ पिए।
कितने बरसों बाद हुए,
ये सपने सारे साकार मेरे।

तेरे दर पर खड़ा हुआ हूँ,
ये जीवन अपना उपहार लिए

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